बीकानेरNidarindia.com ढढ्ढा चौक स्थित सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य विजयराज महाराज का प्रवचन चल रहा है। मंगलवार को महाराज ने प्रवचन में कहा कि पाप का त्याग संकल्प के बगैर संभव नहीं है।
अपना आत्मविश्वास जगाओ, अपने अंदर साहस पैदा करो। जिसमें आत्मविश्वास नहीं है उसमें दीनता, हीनता, मलीनता की भावना बढ़ती रहती है। वह पाप का त्याग नहीं कर सकता और धर्म का अंगीकार भी नहीं कर सकता है।
आचार्य विजयराज महाराज ने साता (सुख)वेदनीय और असाता (दुख)वेदनीय कर्म में भेद बताते हुए कहा कि साता का राग बुरा होता है और असाता का भय भी बुरा ही होता है। हमें इन दोनों से ही बचना चाहिए। ना हम राग में रहें और ना ही हमें भय में रहना चाहिए। महाराज ने कहा कि महापुरुष कहते है कि पाप का त्याग करने के लिए व्यक्ति के भीतर साहस का जागरण होना चाहिए। ऐसा ना होने पर वह पाप का त्याग नहीं कर पाता है।
उन्होंने चार प्रकार के साहस बताते हुए कहा कि पहला साहस है हमारा कदम उठाने का, दूसरा संकल्प के लिए , तीसरा जोखम उठाने के लिए और चौथे प्रकार का साहस काम करने के लिए चाहिए।
आचार्य ने कहा कि साहस नहीं होता है तो विकास भी नहीं होता है। साहस की जननी आत्मविश्वास है। महाराज साहब ने कहा कि मैं यह कार्य कर सकता हूं, या मुझे यह कार्य करना है। जिसमें आत्मविश्वास होता है, उसके जीवन में जीवटता आती है।
साधक के लिए महाराज साहब ने कहा कि साधक अनुकूलता हो या प्रतिकूलता वह हमेशा सम भाव रखता है। साधक कभी भयभीत नहीं होता है। धर्मसभा में नव दीक्षित विशाल मुनि म. सा. ने विनय सूत्र के श्लोक का विवेचन किया। श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि चातुर्मास में गुप्त उपवास के साथ श्रावक-श्राविकाओं ने प्रत्यख्यान, एकासना, उपवास, आयम्बिल, तेला, की तपस्या चल रही है।
संघ के प्रचार मंत्री अंकित सांड ने बताया कि जब से आचार्य का मंगलमय प्रवेश हुआ है, तब से त्याग-तपस्या का निरंतर दौर चल रहा है। इस कड़ी में दस का तप प्रकाशचंद राखेचा का एवं अठाई के तप की सौरभ गिडिया,ऋषभ सेठिया, भाग्यश्री सुराणा, सीमादेवी छाजेड़, दीप्ति देवी झाबक, मधुदेवी, सरिता देवी दसाणी और ज्योति सेठिया की ओर से तपस्या चल रही है।