धर्म-संस्कृति : गुरुकुल परम्परा की आज दरकार, बोले 'कोलकाता प्रवासी पंडि़त शिवकिशन किराड़ू - Nidar India

धर्म-संस्कृति : गुरुकुल परम्परा की आज दरकार, बोले ‘कोलकाता प्रवासी पंडि़त शिवकिशन किराड़ू

बीकानेरNidarIndia.com कोलकाता से श्रीमद् भागवत कथा के लिए बीकानेर आए कर्मकांडी, ख्यातिनाम पंडि़त शिवकिशन किराड़ू ने कहा कि आज गुरुकुल परम्परा की नितांत आवश्यकता है। शुक्रवार रात को शिवशक्ति साधना पीठ में ‘निडर इंडिया’ के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि आज गुरु और विद्यालय की परम्पराएं लुप्तप्राय हो रही है।

इसके संरक्षण के लिए जरूरी है, युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति की जड़ों से जुड़े, उसे समझे, जाने ताकि उनका जीवन संवर सके। उन्होंने कहा कि जीवन में प्रार्थना सही रहेगी, तो कोई संकट, समस्या रहेगी नहीं, आने वाली पीढ़ी का भी कल्याण होगा। इसके लिए जरूरी है ईश्वर की साधन, वहीं भागवत पारायण के मूल पाठ का श्रवण ही यदि किया जाए, तो उसके सकारात्मक परिणाम जीवन में स्वत: ही सामने आने लगते हैं। किराड़ू बोले अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर कहता हूं कि इस शृष्टि के रचियता के होने का अहसास जीवन में मनुष्य को होता है, बस दरकार है उसके प्रति श्रद्धाभाव, आस्था रखने की।

…तो सीए की पढ़ाई छोड़ चुना आध्यात्म का मार्ग

कोलकाता में 20 अप्रेल 1959 को पंडि़त शिव शंकर किराड़ू के घर जन्मे शिवकिशन की बचपन की शिक्षा-दीक्षा कोलकाता में ही हुई, मूल रूप से बीकानेर के होने के बाद कोलकाता में ही पले-बड़े हुए। किराड़ू बताते है कि जब बीकॉम पास किया तो, उसके बाद सीए की पढ़ाई में जुट गए। लेकिन उस दौर में पिता शिव शंकर किराड़ू जो की स्वयं विद्वान पंडि़त थे, उन्होंने एक बार कहा कि सीए बन जाएगा, अच्छी बात है, मगर अपनी जो संस्कृति है, जो जड़े है, वो कहीं न कहीं दूर छूट रही है, उसके संरक्षण के लिए आध्यात्म का मार्ग अपनाना चाहिए। बस फिर क्या था, पिता का आदेश मिला और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज जीवन के पांच दशक बीतने को है तब से कर्मकांड, पूजा-पद्धति, यज्ञ-हवन, अनुष्ठान और अपने मन के संतोष के लिए भागवत पारायण के मूल पाठ कर रहे हैं। गौरतलब है कि किराड़ू आज पूजा-पद्धति, कर्मकांड से उदरपूर्ति करते है, मगर भागवत पाठ अपने आत्म संतोष के लिए ही करते हैं। इसके कभी व्यवसायिक नहीं बनाया।

रिपोर्ट : रमेश बिस्सा, निडर इंडिया न्यूज, बीकानेर

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