-कथा में रासलीला प्रसंग की व्याख्या, पूतना की सजीव झांकी
बीकानेर, निडर इंडिया न्यूज।

देवीकुंड सागर में चल रही भागवत कथा में मंगलवार को स्वामी श्रीधरानंद महाराज ने कई प्रसंगों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है। विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निस्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं।
करपात्री स्वामी निरंजन देव तीर्थ कीर्ति प्रन्यास,राम लक्ष्मण भजनाश्रम के अधिष्ठाता दंडी स्वामी श्रीधरानंद सरस्वती ने तीसरे दिन कथा वाचन करते हुए कहा भक्त प्रह्लाद ने माता कयाधु के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुना था। जिसके सुनने मात्र से भक्त प्रह्लाद के कई कष्ट दूर हो गए थे। कथा का आगाज गुरु वंदना के साथ किया गया।

इसके उपरांत उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की पावन लीलाओं का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को धर्म का ज्ञान बचपन में दिया जाता है, वह जीवन उसका ही स्मरण करता है। ऐसे में बच्चों को आध्यात्म का ज्ञान दिया जाना चाहिए। माता-पिता की सेवा व प्रेम के साथ समाज में रहने की प्रेरणा ही धर्म का मूल है।
कैलाश आचार्य ने बताया रासलीला के दूसरे दिन कंस ने श्रीकृष्ण को ढूंढने और उन्हें मारने के लिए भेजे गए राक्षसों के वध का मंचन किया। इस दौरान पूतना के वध के मंचन के दौरान जय श्रीकृष्णा के जयकारों से पंडाल गूंज उठा।

