- अंतिम दिन विभूतियों का हुआ सम्मान
- साक्षी बने सैकड़ोंं कला प्रेमी, लोक वाद्य यंत्रों ने छोड़ी यादगार छाप…
बीकानेरNidarindia.com
‘कलकत्ते हालो, गवरियों री मौजां बीकानेर में…,‘आज गुरू आविया रे…,‘मीरा जहर को प्यालो पी गई रे… भक्ति रस, गुरु की महत्ता का बखान करते कबीर के निर्गुण शब्द। तो कमायचा की लोक धुने। ठेठ राजस्थानी लोक गीतों की स्वर लहरिया। कला के यह अनुठे रंग रविवार को धरणीधर मंदिर परिसर में देखने को मिला। इसके साक्षी बने सैकड़ों कला प्रेमी।



अवसर था सांस्कृतिक संस्थान लोकायन एवं राजस्थान कला और संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘कला रंग राग’ के दो दिवसीय सांस्कृतिक महोत्सव के समापन समारोह का। इसमें लोक कला, संस्कृति और कबीर के भजनों का समागम सुनकर श्रोता मंत्रमुग्द हो गए। कार्यक्रम में सबसे पहले बीकानेर के ख्यातिनाम गायत्री उपासक पंडि़त जुगल किशोर ओझा(पुजारी बाबा) के सान्निध्य में कलाकारों ने गणगौर गीतों की दमदार प्रस्तुति से माहौल को गणगौरमय बना दिया। नगाड़ों की ताल के साथ कलाकारों ने गणगौर के पारम्परिक गीतों से समां बांध दिया। इस दौरान महिलाओं ने जमकर कलाकारों की हौसलाफजाई की। महोत्सव के समापन पर लोकायन संस्थान के 25 साल पूरे होने पर संस्थापक और इतिहासविद कृष्ण चंद्र शर्मा की स्मृति में सम्मान समारोह आयोजित किया गया।
रावण हत्था की धुनों पर झूम उठे…
कार्यक्रम में बीकानेर के लोक कलाकार भंवर भोपा ने वाद्य यंत्र ‘रावण हत्था’ पर मधुर धुने सुनाकर सभी को झूमने को मजबूर कर दिया। कोलायत की लोक गायिका मांगी बाई के ठेठ राजस्थानी अंदाज में लोक गीतों की स्वर लहरियों से माहोल में लोक संस्कृति की मस्ती घोल दी। वहीं जैसलमेर के हमीरा गांव के मांगणियार कलाकारों ने कमायचे और खड़ताल की जुगलबंदी से समां बांध दिया। कलाकारों ने विशेष शैली में खड़ताल और कमायचे की करतल ध्वनि से वातावरण को लोकमय बना दिया।

वहीं कार्यक्रम में पारम्परिक लोक वाद्य कमायचे के अन्तरराष्ट्रीय लोक कलाकार घेवर खान, फिरोज खान, दारा खान ने कमायचे पर राजस्थानी के ‘मनिहारो, हिन्डोनी, लेली और मारगिया बुहारू सरीखे लोक गीतों की प्रस्तुति देकर खूब दाद बटौरी।
मीरा जहर को प्यालो पी गई रे…
सांस्कृति महोत्सव का समापन मालवा के कबीर भजन के लोक कलाकार अरुण गोयल ने अपनी खास गायन शैली में भजन सुनाकर किया। गोयल ने जब कबीर के निर्गुण भजन ‘आज गुरू आविया रे…के स्वर छेड़े तो श्रोता भाव विभोर हो गए। वहीं कलाकार ने ‘मीरा जहर को प्यालो पी गई रे…, ‘वारि जाऊ रे बलिहारी जाऊ रे…सरीखे भजनों से फिजा बदल दी। श्रोताओं ने तालिया बजाकर कलाकार का उत्साह बढ़ाया।
इन संस्थाओं को मिला सम्मान…
कार्यक्रम में पहला ‘कला राग सम्मान’ जैसलमेर की लोक कलाओं को समर्पित संस्थान ‘कमायचा लोक संगीत संस्थान हमीरा’ को प्रदान किया गया। वहीं कमायचा के प्रसिद्ध वादक पद्मश्री साकर खान की विरासत को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने में उनके लोक कलाकार पुत्रों घेवर खान, दारा खान और फिरोज खान को यह पुरस्कार प्रदान किया गया। इसी कड़ी में दूसरा पुरस्कार “कला रंग सम्मान” बीकानेर की मथेरण कला कलम के चित्रकार मूल चन्द महात्मा को प्रदान किया गया। बीकानेर की स्थापना के समय से इनका परिवार इस प्राचीन चित्रकला को जीवंत रखेे हुए हैं। सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री चंद्र प्रकाश देवल, लोकायन के अध्यक्ष महावीर स्वामी और समाजसेवी रामकिशन आचार्य ने दोनों सम्मानित प्रतिभाओं को 21000 रुपए का नकद पुरस्कार प्रदान किया। साथ ही उस्ता आर्ट से तैयार सम्मान पत्र दिया और शॉल ओढ़ाया।
शहर की 25 कला विभूतियों का भी हुआ सम्मान…
लोकायन के सचिव गोपाल सिंह ने बताया कि लोकायन की स्थापना के 25 साल पूरे होने के मौकेे पर बीकानेर कि उन 25 विभूतियों को भी सम्मानित किया गया जिन्होंने लोक साहित्य, लोक संगीत, लोक कलाओं एवं धरोहर सरंक्षण की दिशा में अपना योगदान दिया है।
इन विभूतियों का हुआ सम्मान…
कार्यक्रम के दौरान डॉ.श्रीलाल मोहता, डॉ.भंवर भादाणी, गिरिजाशंकर शर्मा, विद्यासागर आचार्य, इलाहिबख्श उस्ता, जसकरण गोस्वामी, निर्मोही व्यास, अमरचंद पुरोहित, लक्ष्मीनारायण सोनी, श्याम महर्षि, पन्नालाल पुरोहित, अमरचंद सुथार, बुलाकीदास बावरा, चंद्रशेखर श्रीमाली, सन्नू हर्ष, कलाश्री, नथू खान छींपा, जान मोहमद छींपा, कन्हैयालाल सेवग ‘मामाजी’, मांगी बाई, गवरा बाई, निर्मोही व्यास, ढूंढ महाराज, जगनाथ चूरा, भोजराज सोलंकी, राजकुमार डफगर, लक्ष्मी नारायण स्वामी, प्रियंका स्वामी को सम्मानित किया गया।
चित्रों में झलकी लोक कला…
इस अवसर पर बीकानेर के तीस चित्रकारों के बनाए गए लोक चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। जिसको दर्शकों ने खूब सराहा। कार्यक्रम का सचालन संजय पुरोहित और हरीश बी शर्मा ने किया। आगंतुकों का आभार लोकायन सचिव गोपाल सिंह चौहान ने ने किया।


