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राजस्थान : डॉ.देवीप्रसाद गुप्त का निधन से साहित्य जगत में शोक, महाकाव्यों के थे समालोचक…

बीकानेरNidarindia.com शिक्षाविद डॉ.देवीप्रसाद गुप्त का शनिवार को सुबह देहावसान हो गया। गुप्त 86 वर्ष के थे, वे लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे थे। गुप्त के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई है।

देवीप्रसाद हिंदी महाकाव्यों के विशेषज्ञ के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित प्रखर समालोचक थे। राजकीय डूंगर महाविद्यालय के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त डॉ. देवीप्रसाद गुप्त हिंदी, संस्कृत, ब्रज, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी आदि कई भाषाओं के जानकार थे तथा लगभग 35 साल तक राजस्थान के विभिन्न्न महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य करते हुए छात्रों को हिंदी साहित्य में दीक्षित किया। उनके निर्देशन में 40 से अधिक शोधार्थियों ने कथा, कविता,नाटक आदि विधाओं के साथ भाषा विज्ञान के आधारभूत शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधियां प्राप्त की, वहीं उनके निर्देशन में 100 से अधिक लघुशोध प्रबन्ध लेखन कार्य हुए।

डॉ.देवीप्रसाद गुप्त बीकानेर के साहित्यकारों पर शोध कार्य कराने की परंपरा के सूत्रधार थे और उनके निर्देशन में यहां के अनेक साहित्यकारों के सृजन पर शोध कार्य हुआ ।

ख्यात विद्वान डॉ.माताप्रसाद गुप्त के निर्देशन में उन्होंने हिंदी महाकाव्यों पर शोध कार्य किया और डॉ फादर कामिल बुल्के उनके साथी शोधार्थी रहे। हिंदी महाकाव्य सिद्धांत और मूल्यांकन, हिंदी के पौराणिक महाकाव्य, आधुनिक हिंदी प्रतिनिधि महाकाव्य, स्नात्तकोत्तर हिंदी महाकाव्य, साहित्य सिद्धांत और समालोचना, साहित्यिक निबंध आदि उनके उल्लेखनीय शोध ग्रंथ हैं ।
पूना, आगरा, इलाहाबाद, मेरठ, अलीगढ़, बड़ौदा, अमृतसर, कुरुक्षेत्र, चंडीगढ़, पटियाला आदि कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम समिति और रिसर्च बोर्ड के सदस्य रहे डॉ.देवी प्रसाद गुप्त आर्षग्रन्थों के भी अध्येता विद्वान थे और देश के कई शहरों में वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति, रामायण, गीता, श्रीमद्भागवत पर उनके व्याख्यान हुए ।

वे उद्भट विद्वान और समालोचक के साथ संवेदनशील कवि और कथाकार थे । उनका कहानी संग्रह ‘पीला गुलाब” बहुत चर्चित रहा ।
उनके सुपुत्र समालोचक एवं सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ.उमाकांत गुप्त ने बताया कि रविवार को सुबह 8:30 बजे उनकी अंतिम यात्रा निवास स्थान सरला सदन जैल वेल से परदेशियों की बगेची जाएगी।

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