-नगर स्थापना दिवस पर ‘निडर इंडिया’ के लिए नारनौल, महेन्द्रगढ़, हरियाणा से प्रवासी बीकानेरी ‘अंजना बिस्सा’ की यह खास रिपोर्ट।
बीकानेर.महेन्द्रगढ़.
बीकानेर आज अपना 537 वां नगर स्थापना दिवस मना रहा है। ऐसे में पूरे नगर में हर्षोल्लास का माहौल है। लोग छतों पर पतंगबाजी का लुत्फ उठा रहे हैं। तो आज शाम को परम्परा के अनुसार सभी के घरों में बाजरे का खिचड़ा, इमली का पानी (आमली)और विशेष तरह की रोटी का भोजन बनेगा।
इस लजीज और स्वादिष्ट भोजन का इंजतार बीकानेर के लोगों को वर्षभर तक रहता है। फिर चाहे वो बीकानेर में रह रहे हैं, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, चैन्नई, हरियाणा, हैदराबाद या विदेश में भी क्यों नहीं प्रवास कर रहे हैं। प्रवासी जो बाहर रहते हैं बीकानेर उनके दिल में बसा है, वे अखबीज और तीज पर होने वाली रौनक का भले ही भागीदार नहीं बन पाते हो, लेकिन वो जहां भी रहते हैं, आखाबीज और तीज का पर्व पूरे जोश, उत्साह और परम्परा के साथ ही मनाते हैं।
समाज में जिन परिवारों की बेटियां दूसरे प्रदेशों में ब्याही हुई है, तो उनके परिजन बीकानेर से देशी बाजरे का खिचड़ा, इमली, मूंग की बड़ी उनके यहां पहुंचाते हैं। ताकि वो आज के दिन अपने शहर का खास भोजन पका कर उसका लुत्फ उठा सके। बीकानेर के स्थापना दिवस पर कोरी मटकी की पूजा करना। फिर सभी बड़े-बुजुर्गों के पांव छूकर आशीर्वाद लेना शहर की परम्परा को भी पूरी तरह से निभाते हैं।
मैं भी हरियाणा में ही प्रवास कर रही हूं, लेकिन आज भी परम्पराएं अपने शहर बीकानेर की ही निभाते हैं। फिर चाहे कोई सा त्योहार हो। फिर यह तो नगर के स्थापना का दिवस है, इस दिन को उत्सव तरह मनाते है। बीकानेर में इस दिन का ये मेन्यू हर घर में बनता है ,वो भारत ही नहीं बल्कि भारत से बाहर रहने वाला भी हर बीकानेरी इस दिन ये खाना बनाकर उसका लत्फ उठाता है।
विदेश में रह कर भी उनको अपनी संस्कृति और देश से जुड़ाव महसूस होता है, अपनी बोली और भोजन जीवन में कितनी भी तरक्की कर लें, व्यापार में कामयाबी की ऊंची छलांग लगा ले, लेकिन एक सच्चा बीकानेरी अपनी परम्परा को नहीं भूलता है।