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महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केन्द्र की ओर से मंगलवार को “भारतीय ज्ञान परम्परा में महिलाएं” विषयक व्याख्यान का आयोजन किया गया।
इसमें मुख्या वक्ता के रूप में महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. चन्द्रकला पाडिय़ा ने भारतीय ज्ञान परम्परा में महिलाओं की भूमिका पर भारतीय धर्मशास्त्रों से उदाहरण लेते हुए प्रकाश डाला।


उन्होनें बताया कि भारतीय दर्शन, संस्कृति एवं परम्पराओं में नारी को पुरूषों से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। प्राचीन काल मे नारी शिक्षित, विदुषी एवं कर्तव्यपरायण होती थी। अध्यात्म एवं लोकाचार के अतिरिक्त ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र मेेें भी स्त्रीयां पुरूष से कमत्तर कही भी नहीं थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि भारतवर्ष में आदिकाल से नारी का आदर किया जाता रहा है। हमारे वेदों, उपनिषदों, धर्मशास्त्रों तथा स्मृतियों में इस तथ्य का बारम्बार उल्लेख मिलता है।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव हरिसिंह मीना ने कहा कि मां ही शिशु की सबसे पहला व सबसे बड़ा गुरू होती है एवं नारी शक्ति के बिना मानव समाज की कल्पना, मात्र कल्पना है। विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक अरविन्द बिश्नोई ने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीय ज्ञान परम्परा में नारी का योगदान अति विशिष्ट रहा है।
महिला अध्ययन केन्द्र की निदेशक डॉ. सन्तोष कंवर शेखावत ने विषय प्रवर्तन एवं आगन्तुकों का अभिनन्दन किया। अतिरिक्त कुलसचिव ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रभुदान चारण ने किया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल कुमार छंगाणी, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. प्रगति सोबती, डॉ. ज्योति लखानी, डॉ गौतम मेघवंशी, डॉ धर्मेश हरवानी, डॉक्टर अभिषेक वशिष्ठ, डॉ. गिरिराज हर्ष, डॉ. प्रकाश सारण, डॉ. सुरेन्द्र गोदारा सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक, अतिथि शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी मौजूद रहे।



