कला जगत : रंगमंच तो जीवट है, फिल्म तो एक तरह से तस्वीर है : कुलश्रेष्ठ - Nidar India

कला जगत : रंगमंच तो जीवट है, फिल्म तो एक तरह से तस्वीर है : कुलश्रेष्ठ

-वरिष्ठ रंगकर्मी, निदेशक, अभिनेता सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने निडर इंडिया से की खास बातचीत

बीकानेर, निडर इंडिया न्यूज।

रंगमंच तो जीवट है, क्योंकि मंच पर जिन्दा आदमी होता है।  फिल्म में दिखता है, लेकिन असल में तो वो एक तरह से तस्वीर ही है। यह कहना है राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त ख्यातनाम रंगकर्मी, निदेशक, अभिनेता सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ का। बीकानेर थिएटर फेस्टिवल में शामिल होने के लिए आज बीकानेर आए वरिष्ठ अभिनेता कुलश्रेष्ठ  से”निडर इंडिया न्यूज” के सम्पादक रमेश बिस्सा ने  की खास बातचीत ।

इस दौरान कुलश्रेष्ठ ने रंगकर्म के कई पहलुओं पर चर्चा की। एक सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि आज भले ही वेब, ओटोटी, फिल्म, मोबाइल, नेट का जमाना आ गया है, लेकिन इसके बावजूद मैं यह कहता हूं कि रंगमंच हमेशा रहेगा। आज देश में फिल्में भी बन रही है, ओटीटी प्लेटफार्म, सोशल मीडिया का युग है, मगर इन सब की भीड़ के बीच में भी रंगमंच तो अपनी जगह पर कायम है। कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, लखनऊ सहित देश के कई महानगरों में आज भी टिकट खरीद कर लोग थिएटर में नाटक देखने के लिए जाते हैं। देश में आज भी रंगमंच का माहौल, बेहतरीन रंगकर्मी है। निदेशक है, लेखक है। रंगमंच हो रहा है।

बीकानेर का सराहनीय प्रयास

कुलश्रेष्ठ ने बताया कि आज बीकानेर पहुंचे है। यहां के रंगकर्मी बड़ी महनत और शिद्धत से यह फेस्टिवल कराते हैं। यह उनका सराहनीय कार्य है। यहां आकर खुशी हुई कि युवा रंगकर्मी भी पूरी निष्ठा के साथ जुटे है।

सौ से ज्यादा नाटकों कर चुके है निर्देशन

लखनऊ मूल के सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने रंगमंच पर 50 साल का सफर पूरा अब तक कर लिया है। वे अब तक जर्मनी, स्विडन, डेनमार्क, नार्वे, अमेरिका, पाकिस्तान सहित केई देशों में अपने फन का जादू बिखेर चुके हैं। साथ ही अब तक  100 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी कर चुके हैं। कुलश्रेष्ठ वरिष्ठ रंगकर्मी हबीब तनवी, बहादुर सरकार और बीबी कारंत सरीखों से प्रेरित है।

  फाइल फोटो।

फिल्मों से ज्यादा रंगमंच से लगाव

अभिनेता के तौर पर कुलश्रेष्ठ ने नामचीन निर्देशकों और अभिनेताओं के साथ सुनहरे पर्दे पर भी काम कर चुके है। बकौल फिल्में की है, लेकिन दिल में बस रंगमंच ही बसता है। इसलिए रंगमंच ही पसंद है। कुलश्रेष्ठ का मनाना है कि नाटक का अपना अलग मजा होना चाहिए, उसे फिल्म की तरह नहीं बनाएंगे, तो रंगमंच पर नाटक ही श्रेष्ठ रहेगा। गौरतलब है कि आपने अपूर्व सिंह निर्देशित फिल्म “सिर्फ एक बंदा ही काफी” में बेहतरीन अभिनय किया था। इस फिल्म में आपने खलनायक (नेगेटिव रोल) की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म मनोज वाजपेयी भी एक अहम रोल में थे। इसके अलावा “ये वो मंजिल तो नहीं” और सुधीर मिश्रा कि  “दास देव” सरीखी कुछ चुनिंदा फिल्मों में अपने अभिनय कौशल का प्रदर्शन कर चुके हैं। बीकानेर में कल से शुरू हो रहे थिएटर फेस्टिवल में पहला नाटक “शिकस्ता” का मंचन होगा जिसमें सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ अभिनय करेंगे।

 

 

 

 

 

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