बीकानेर, निडर इंडिया न्यूज।
वित्त मंत्री ने हाल ही में बजट पेश किया था। इसमें सरकार ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा को मौजूदा 74% से बढ़ाकर 100% करने की घोषणा की है। लेकिन इस घोषणा से बीमा कर्मिकों में जबर्दस्त रोष है। बीमा कर्मचारियों के राष्ट्रीय संगठन आल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाइज एसोसियेशन (AIIEA) ने सरकार के इस निर्णय को पूरी तौर पर अनुचित बताया है। एसोसिएश्सन के पदाधिकारियों ने रोष जताते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कीमती संसाधनों को जुटाने और अपने नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व को पूरा करने के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे । संगठन ने सरकार के इस निर्णय की कड़ी निंदा की है। इस कदम के खिलाफ जनमत निर्माण का ऐलान किया । इस कड़ी में संगठन के आव्हान पर आज चार फरवरी को एफ डी आई की यह वृद्धि वापस लेने की मांग करते हुए देश भर में बीमा कर्मचारियों ने प्रदर्शन किया।
गौरतलब है कि वर्ष 1999 में आईआरडीए विधेयक के पारित होने के साथ ही बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण समाप्त किया गया था । इस अधिनियम ने भारतीय पूंजी को विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में बीमा उद्योग में काम करने की अनुमति दी। उस समय एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत तक सीमित था। तब से इसे बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है। विदेशी भागीदारों के साथ बड़ी संख्या में निजी बीमा कंपनियाँ जीवन और गैर-जीवन बीमा उद्योग दोनों में काम कर रही हैं। इन कंपनियों के लिए अपने व्यवसाय को चलाने के लिए पूंजी कभी भी बाधा नहीं रही है, क्योंकि इनका स्वामित्व बड़े व्यापारिक घरानों के पास है जो विश्व के शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ साझेदारी करते हैं।
शायद एक को छोड़कर, कोई भी बीमा कंपनी 74 प्रतिशत एफडीआई सीमा को पार करने के करीब भी नहीं है। हकीकत में, बीमा में कुल एफडीआई नियोजित पूंजी का लगभग 32 प्रतिशत ही है। इस मामले में, यह आश्चर्यजनक है कि सरकार ने विदेशी पूंजी को भारत में काम करने की पूरी स्वतंत्रता देने का कदम क्यों उठाया है। यदि कोई किसी कंपनी में विदेशी साझेदार इससे से अलग होकर कोई नई कंपनी बनाने का फैसला कर लेगा तो इस निर्णय से भारतीय कंपनियों और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर परिणाम होंगे।
एआईआईईए को विश्वास है कि विदेशी पूंजी को पूर्ण स्वतंत्रता और हमारी घरेलू बचत यानि वित्तीय स्रोत तक अधिक पहुंच प्रदान करने से बीमा उद्योग का व्यवस्थित विकास बाधित होगा, क्योंकि उनके द्वारा आम लोगों और व्यवसाय को आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने के बजाय लाभ पर अधिक ध्यान दिया जाएगा। इससे भारतीय समाज के हाशिए पर पड़े वंचित वर्गों के हितों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। मंडल सचिव शौकत अली ने कहा है कि यह निंदनीय है कि बजट में आर्थिक विकास को गति देने के लिए आबादी के एक छोटे से हिस्से पर भरोसा किया गया है, जबकि बहुसंख्यक वर्ग के हितों की अनदेखी की गई है।
इसने कॉर्पोरेट क्षेत्र पर समुचित स्तर का कर लगाने से इनकार कर दिया,जबकि आर्थिक सर्वेक्षण ने इस तथ्य की ओर इशारा किया है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का मुनाफा बढ़ रहा है और उसकी तुलना में श्रमिकों का वेतन स्थिर है। संगठन की मांग है कि सरकार ने बीमा कानून जैसे बीमा अधिनियम 1938, एलआईसी अधिनियम 1956 और आईआरडीए अधिनियम 1999 में संशोधन करने के प्रतिगामी प्रस्ताव के खिलाफ गंभीर चेतावनी दी है। साथ ही सरकार से अपनी आर्थिक नीतियों को कॉर्पोरेट पक्षधर से हटाकर जन-केंद्रित उपायों की ओर मोड़ने की मांग की है।