रमेश बिस्सा

बीकानेर,निडर इंडिया न्यूज।
बीकानेर में सर्दी की आहट के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा से भीतरी परकोटे में धुणे(अलाव) चेतन हो गए। हलांकि इस बार पूर्णिमा पर अभी भी धूप में तल्खी का अहसास हो रहा है, रात में भी पंखे चल रहे हैं। लेकिन परम्परा के अनुसार आज के दिन से भीतरी परकोटा में धुणे चेतन हो जाते है। इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए डागा चौक में नृसिंह धुणे को आज पूरी विधविधान के साथ शुरू किया गया।

इसके लिए नृसिंह भगवान के मंदिर से आरती की लौ लाकर धुणे में अग्नि प्रज्जवलित की गई। इस दौरान पंड़ित अशोक बिस्सा ने मंत्रोचारण के साथ ही पूजा-अर्चना कराई। भक्त प्रहलाद के जयकारों के साथ ही प्रसाद का वितरण किया गया। पंड़ित अशोक बिस्सा, न्यायिक कार्मिक नेता गिरिराज बिस्सा और खुशालचंद रंगा ने बताया कि हर साल आज कार्तिक पूर्णिमा की शाम को डागा चौक का प्राचीन धुण चेतन हो जाता है। यह धुणा धुलंडी के दिन तक रात के समय चलेगा। शहर में पाटा संस्कृति की तरह ही अलग-अलग मोहल्लों में सर्दी में धुणों की परम्परा रही है। फिर बात चाहे गर्मी के मौसम में पाटे पर जाजम लगाने की हो, या सर्दी के मौसम में धुणे पर बतियाने की। आज शुक्रवार की रात को डागा चौक में परम्परा का निर्वाह किया गया। अब सर्दी के तेवर जैसे-जैसे तीखे होंगे, शहर के कई मोहल्लों में धुणे चेतन हो जाएंगे।
रात गहराने के साथ ही धुणे पर भी अलग-अलग विषयों पर शुद्ध चर्चा का दौर परवान चढऩे लगेगा। सर्दी से बचाव के जतन के साथ ही चेतन धुणे पर लोगों का जमावड़ा बढ़ता जाएगा। चर्चा आम विषय से शुरू होकर राजनीति की उठा-पटक तक पहुंच जाती है।

इनकी रही भागीदारी
डागा चौक में शुरू धुणे में पंड़ित अशोक बिस्सा के साथ ही न्यायिक कर्मचारी नेता गिरिराज बिस्सा(मन्ना महाराज) खुशाल चंद रंगा(भालजी), एडवोकेट श्रीनाथ रंगा, तबला वादक अशोक बिस्सा, सुरेश रंगा, दाऊ लाल, राजा जोशी, इंद्र कुमार, गायक आशुतोष रंगा सहित गणमान्य लोगों का जमावड़ा रहा।
रियासकालीन है धुणा
धुणे पर अलाव ताप रहे खुशाल चंद रंगा सहित लोगों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि डागा चौक में यह नृसिंह धुणा रियासकाल से ही शुरू हो गया था। दंत कथाओं के अनुसार यहां किसी संत महात्मा ने इसका आगाज किया था। तब से आज के दिन कार्तिक पूर्णिमा से यह चेतन किया जाता है। बीकानेर में नत्थूसर गेट, हर्षों का चौक, दम्माणी चौक, भट्ठड़ों का चौक, बिस्सा चौक, बारहगुवाड़ सहित भीतरी परकोटे में सर्दी में धुणे पर अलाव तापने की परम्परा है।

