दीपोत्सव : घर के आंगन की शोभा बनती है रंगोली, कायम है परम्परा, आजकल आर्टिफिशियल की बढ़ी मांग                                         - Nidar India

दीपोत्सव : घर के आंगन की शोभा बनती है रंगोली, कायम है परम्परा, आजकल आर्टिफिशियल की बढ़ी मांग                                        

बीकानेर,निडर इंडिया न्यूज। 

“जिस द्वारे पे घर की बहु रंगोली सजाती है, उस द्वारे घर के अंदर लक्ष्मी आती है…फिल्मी गीत की यह पंक्तियां दीवाली को घर-घर में साकार हो उठेगी। इसको लेकर महिलाएं अभी से तैयारी में जुट गई है। घर के आंगन को सजाने में सबसे अहम है रंगोली। इसको लेकर बालिकाएं खास तौर पर उत्साहित रहती है। दीपोत्सव के पहले दिन घर के आगे मिट्‌टी से आज भी गोवर्धन भगवान का प्रतीक रूप् बनाया जाता है। फिर दीपक जलाए जाते हैं। साथ ही घर के आंगन, बरामदे, कमरों के आगे, सीढ़ियां पर भी अलग-अलग तरह की रंगौलियां सजाई जाती है। देश के कई प्रांतों में घरों के आगे रोजाना ही रंगोली बनाई जाती है।

आज बदल रहा है ट्रेंड

बदलते युग के साथ ही ट्रेंड भी बदल रहा है। खासकर सजावट को लेकर महिलाएं भी काफी संजीदा है। ऐसे में वर्तमान में मिट्‌टी, गुलाल इत्यादि की रंगोली के साथ ही रंग-बिरंगी आर्टिफिशियल (स्टीकरनुमा) रंगोली का प्रचलन भी बढ़ गया है। इसमें अलग-अलग डिजाइन और कलर आकर्षित करते हैं। घरों के आंगन में लाकर सीधा ही लगा सकते हैं। यह आसानी से चिपक जाती है। दिखने में भी सुन्दर है। रेडिमेड है, पानी से धुलने पर भी एक बार में नहीं हटती।

इनसे अटे पड़े है बाजार

बाजारों में भी इस तरह की रंगोली बेचने वालों की भरमार है। कोटगेट, केईएम रोड, स्टेशन रोड, बड़ा बाजार, व्यास कॉलोनी, जस्सूसर गेट, मुरलीधर व्यास कॉलोनी रोड सहित क्षेत्रों में सड़क किनारे अस्थायी दुकानें इन दिनों सजी गई है। इनमें कई तरह की रंगोलियां रेडिमेड मिल रही है। बाजरों में यह 30 से 80 रुपए तक की दरों पर मिल रही है।

बनाने में लगती है मेहनत

हलांकि ऐसा नहीं है कि हर कोई दीवाली के दिन आर्टिफिशियल रंगोली, स्वास्तिक, चरण पादुकाएं इत्यादि रेडिमेड या स्टीकरनुमा ही लेकर आए। आज भी बड़ी संख्या में बालिकाएं अपने घरों के आगे और आंगन में अलग-अलग रंगों से बेहतरीन रंगोली सजाती है। इसमें गुलाल का उपयोग बहुत संदुर ढंग से किया जाता है। वहीं आज भी सफेद मिट्‌टी के चरण पादुकाएं उकेरी जाती है। लेकिन रंगों की रंगौली बनाने में मेहनत और समय लगता है।

यह है महत्व

रंगोली भारत के किसी भी प्रांत की हो, वह लोक कला है। इसको मांगलिक अवसरों पर बनाने में शुभ माना गया है। रंगोली के लिए शुभ प्रतीकों का चयन किया जाता है। नई पीढी पारंपरिक रूप से इस कला को सीखती है और इस प्रकार अपने-अपने परिवार की परंपरा को कायम रखती है। वहीं रंगोली के प्रमुख प्रतीकों में कमल का फूल, इसकी पत्तियाँ, आम, मंगल कलश सहित अलग अलग तरह  की आकृतियां और बेलबूटे लगभग पूरे देश की रंगोलियों में पाए जाते हैं। दीपावली की रंगोली में दीपगणेश या लक्ष्मी का चित्रण होता है। हलांकि अलग-अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली भिन्न है, लेकिन उनकी भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है।

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