-सूफी कलाम दमादम मस्त कलन्दर पर झूम उठे श्रोता, अन्तरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिनाम कलाकारों से सजी संध्या, देशनोक में रहा कबीर यात्रा का अंतिम पड़ाव
रमेश बिस्सा
बीकानेर, निडर इंडिया न्यूज।
राजस्थान कबीर यात्रा का रविवार को अंतिम पड़ाव मां करणी की धरा देशनोक में रहा। मलंग फोक फाउण्डेशन और जिला प्रशासन की ओर आयोजित इस अनूठे आयोजन की यादे लोगों के दिलों में चिर स्थायी रहेगी। बीकानेर जिला मानो 1 से 6 अक्टूबर तक पूरा कबीरमय हो गया।
धोरों की धरती पर कबीर वाणी, तो मीरा के भजन, सूफी कलाम, संतों के निर्गुण भजन की स्वर लहिरयों से सराबोर रही। यात्रा के माध्यम आज के समय में कबीर की प्रासंगिता का संदेश देने का प्रयास किया गया। कार्यक्रम का भव्य समापान देशनोक में हुआ। अंतिम सोपान में अन्तराष्ट्रीय कलाकारों ने सूफी कलाम, भजन और कबीर की शबद वाणी के समावेश की यादगार प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने भी स्वर छेड़े, उन्होने कबीर की वाणी सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राजस्थान कबीर यात्रा में शामिल कलाकारों ने गायन शैली से विशेष छाप श्रोताओं के दिलों पर छोड़ी। कार्यक्रम में राजस्थान कबीर यात्रा के गोपाल सिंह ने कबीर यात्रा के मुख्य उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इस मौके पर केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, खाजूवाला विधायक डॉ.विश्वनाथ मेघवाल, जिला कलेक्टर नमृता वष्णि, नगर निगम आयुक्त मयंक मनीष और यूआईटी सचिव अर्पणा गुप्ता, विमला डुकवाल सहित गणमान्य लोग बतौर अतिथि मौजूद रहे। वहीं कार्यक्रम में देशनोक के नगर पालिका अध्यक्ष ओम प्रकाश मूंधड़ा, करणी मंदिर निजी प्रन्यास के अध्यक्ष बादल सिंह, नगर पालिका में नेता प्रतिपक्ष प्रियंका चारण, थाना प्रभारी सुमन शेखावत सहित अतिथि शामिल हुए।
नाम हरी का जप ले….
पद्मश्री डॉ.भारती बंधु ने आज अपने खास अंदाज में कबीर का भजन “नाम हरी का जप ले बंदे, फिर पाछे पछताएगा” सुनाया तो पूरा परिसर ही तालियों से गूंज उठा। भारती बंधु ने जब सूफियाना कलाम “दमादम मस्त कलन्दर” के स्वर छेड़े तो श्रोता भी अपने को झूमने से रोक नहीं सके। श्रोताओं ने कलाकारों के साथ गुनगुनाते हुए झूमने लगे। डॉ.भारती बंधु के साथ तबला पर फिरोज खान, ढोलक पर सलमान खान ने संगत की, वहीं सी.वी.वाचस्पति भारती, इंदू भूषण भारती, संदीप नायक, झनक्रित मछखंड ने सह गायन में भागीदारी निभाई।
गिटार-ड्रम की ताल पर कबीर भजन की स्वर लहरियां…
कार्यक्रम में आज खास आकर्षण रहे मुम्बई से आए कबीर कैफे बैंड ने अपनी अनूठी शैली से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। नीरज आर्य सहित ग्रुप के कलाकारों ने गिटार, ड्रम की धुनों पर “चौरासी की नींद में म्हारा सद्गुरु आ के जगा दिया…की तान छेड़ी तो श्रोता भक्ति रस में डूब गए। श्रोताओं ने कलाकारों को जमकर दाद दी। गायन की विशेष शैली ने सभी को आनंदित कर दिया। कार्यक्रम में मालवा के अरुण गोयल ने कबीर सहित संतों की वाणियां सुनाकर कबीरमय माहौल बनाया।
बताई गुरु की महिमा…
कार्यक्रम का आगाज अजीतपुरा से आए कलाकार राम स्वरूप दास ने अपने गुरु सदगुरु राम साहेब की वाणी “प्रथम करूं गुरु देव को वंदन, मुक्ति के दाता काटे भवबंधन…गुरु की महिमा के बखान से किया। रामस्वरूप में मां करणी के भजन और कबीर की वाणी की मधुर प्रस्तुतियो से समा बांध दिया। कार्यक्रम में दिल्ली से आए चार यार ग्रुप, जैतारण की सुमित्रा देवी, पूगल के मीर बसु, सादोलाई की मीरा बाई ने कबीर, मीरा, सूफी संतों के भजन और वाणियां सुनाकर भक्तिमय वातावरण बना दिया।
सड़क से ही शुरू हुआ है कबीर कैफे बैंड का सफर : नीरज आर्य
कबीर यात्रा में बीकानेर आए कबीर कैफे बैंड ने अपनी शुरुआत मुम्बई में सड़कों पर गाने से शुरू की। ग्रुप के नीरज आर्य गिटार लेकर अकेले ही कबीर के भजन, दोहे गुनगुनाया करते थे। मन में बस एक लगन थी, कहीं-कहीं एक बात थी कि अपनी माटी की गायन शैली, खासकर कबीर सरीखे संतों की वाणी को दूर तक ले जाना है। फिर क्या था, मन में पक्का इरादा करके निकल पड़े।
समूह के संस्थापक कलाकार नीरज आर्य ने 2000 के दशक की शुरुआत में एकल कलाकार के रूप में अपना संगीत कैरियर शुरू किया। अपने गुरु प्रहलाद सिंह टिपानिया से प्रभावित होकर , नीरज आर्य का परिचय 15वीं शताब्दी के संत कबीर से हुआ। उन्होंने कबीर के दोहों और साखियों की लोक धुनें बजाना शुरू कर दिया । वर्ष 2012 में मुंबई की सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए, आर्य की मुलाकात वायलिन वादक मुकुंद रामास्वामी से हुई, जो एक कर्नाटक वायलिन वादक हैं, और दोनों ने एक जोड़ी के रूप में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।
इसी दौरान कारवां बनता गया। वर्ष 2013 में समूह ने खुद को कबीर कैफे के रूप में पेश किया। इस बैंड ने कई एलबम भी जारी किए। इस बैंड ने भारत और विदेशों में 800 से अधिक संगीत कार्यक्रम किए हैं। नीरज आर्य का मनना है कि मंच पर होते है, तब और उतरते है तब भी कबीर का आशीर्वाद उनके सदैव साथ रहता है। बकौल नीरज कबीर के दोहों में बहुत ताकत है। यही वजह है कि आज भी कबीर की वाणी प्रासंगिक है।