प्रदेश में कृषि विकास की कैसी है संभावनाएं। किस तरह की पैदावार यहां अधिक है। पानी की क्या स्थिति है। कृषि की अपार संभावनाओं पर ‘डॉ.उदयभान, सेवानिवृत्त, संयुक्त निदेशक, कृषि (विस्तार) का यह विशेष आलेख खास पाठकों के लिए प्रस्तुत है।
बीकानेर,Nidarindia.com
बीते दिनों कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में दालों, खाद्य तेलों और गेहूँ के आयात सम्बंधी समाचार पढें। “द इकोनोमिक टाइम्स” की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023-24 में कुल खाद्यान उत्पादन 328.85 मिलियन टन रहने की संभावना है जो वर्ष 2022-23 के लगभग बराबर है। नीति आयोग द्वारा राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. प्रताप सिंह बिरथल (लेखक भी जिनका 7 वर्ष तक सहपाठी रहा है) की अध्यक्षता में फसल कृषि व्यवस्था, कृषि आदान, मांग और आपूर्ति (¼Crop Husbandry, Agriculture
Inputs, Demand and Supply) पर गठित कार्य समूह ने फरवरी, 2024 की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वर्ष 2047-48 तक भारत की 1.66 अरब आबादी के लिए खाद्यानों की मांग 2. 44 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ते हुए 402 टन मिलियन होगी।
यद्यपि खाद्यानों की मांग एवं आपूर्ति कोई विशेष चुनौती नहीं है। “बिजनेस स्टण्डर्ड” की फरवरी, 2024 की रिपोर्ट के अनुसार 2047-48 में खाद्यानों का उत्पादन मांग से 5-14 प्रतिशत अधिक रहने की संभावना कार्य समुह ने जिस विषय को अधिक महत्वपूर्ण माना है, वह है जनसंख्या के बड़े हिस्से में भोजन की पोष्टिकता और विविधता की ओर आकर्षण बढऩा जिससे आने वाले वर्षो में पोषक अनाज, दलहन, खाद्य तेल, फल-सब्जियों, मसालों व औषधीय फसल उत्पादों की मांग अधिक होना संभावित है।
स्त्रोत :- फसल कृषि व्यवस्था, कृषि आदान, मांग और आपूर्ति पर कार्य समूह की रिपोर्ट – 2022
-स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और भारत सरकार के प्रोत्साहन अभियान के कारण यह मांग 33 मिलियन टन होना संभावित है ।
-ऐसी परिस्थिति में आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने के लिए मांगानुसार फसल उत्पादन में वृद्धि अति आवश्यक हो जाती है जो दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती है। एक, प्रति हैक्टेयर उत्पादन बढाकर और दूसरा फसली क्षेत्र का क्षैतिज विस्तार ( Horzontal
Area Expansion ) करके। भारत सरकार की रिपोर्ट “कृषि सांख्यिकी एक नजर में के अनुसार भारत में लगभग 1.19 करोड़ हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि खाली पडी है जिसमें से सबसे अधिक 37.94 लाख हैक्टेयर राजस्थान में है जो हरियाणा की कुल कृषि योग्य भूमि के बराबर है।
मसाला फसलों की खेती…
कृषि की संभावनाओं के संदर्भ में जब कृषि बागवानी विशेषज्ञ डॉ.इंद्र मोहन वर्मा ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि इस दृष्टि से राजस्थान में फसली क्षेत्र के क्षैतिज विस्तार की असीम संभावनाएं हैं जिससे राज्य न केवल फसल उत्पादन में बल्कि फसल विविधिकरण में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है क्योंकि यहां 6 प्रकार के अनाज व मोटे अनाजों, 8 दालों, 6 खाद्य तेलीय फसलों, 7 मसाला फसलों, 11 फलों, 24 प्रकार की सब्जियों व 7 औषधीय फसलों की खेती होती है।
यदि हम अपनी 37.94 लाख हैक्टेयर खाली पडी कृषि योग्य भूमि में से आधी भूमि को ही सुधारकर सूक्ष्म सिंचाई पद्यति से जोड़ दें तो राष्ट्रीय स्तर पर चना, सरसों, बाजरा या इसबगोल उत्पादन में राजस्थान का योगदान क्रमश: 9, 15, 16 या 100 प्रतिशत तक बढ सकता है।
सिंचाई जल है अहम…
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कृषि उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन सिंचाई जल है। सिंचाई की व्यवस्था होने पर किसान अपनी मेहनत व यन्त्रीकृत तरीके से बारानी भूमि को भी सिंचित बना लेता है । केन्द्र व राज्य सरकार की नितियां व योजनाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं। राजस्थान में देश का केवल 1.16 प्रतिशत सतही और 1.70 प्रतिशत भू-जल उपलब्ध है। केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में भू-जल के 74 प्रतिशत स्त्रोत पहले की अतिदोहन की श्रेणी में है, अत: स्तही जल की अधिकाधिक उपलब्धता और विवेकपूर्ण उपयोग पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
इंटरनेशन जरनल ऑफ क्रियेटिव थोट्स” में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार राज्य में कुल 21.7 अरब घन मीटर स्तही जल में से 16 अरब घन मीटर ही आर्थिक रूप से व्यवहार्य (Economically Viable) है जिसमें से राज्य में अभी तक 70 प्रतिशत जल को ही संग्रहण करने की क्षमता है। व्यवहारिक दृष्टि से इस क्षमता को 21 प्रतिशत तक बढाया जा सकता है जिससे 3.36 अरब घन मीटर अतिरिक्त जल उपलब्ध होगा जिससे सूक्ष्म सिंचाई तकनीक अपनाकर 6 से 8 लाख हैक्टेयर बारानी क्षेत्र को सिंचित किया जा सकता है।
इसी प्रकार पड़ोसी राज्यों-पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश से प्राप्त जल को भी समुचित उपयोग कर सिंचित क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। नर्मदा नदी परियोजना के तहत आने वाले जालोर तथा बाड़मेर जिलों में राज्य सरकार की ओर से सिंचाई के लिए शत-प्रतिशत फव्वारा पद्यति अनिवार्य कर उतने ही जल से 1.35 लाख से बढ़ाकर 2.46 लाख हैक्टेयर ( 78 प्रतिशत वृद्धि) क्षेत्र को सिंचित कर दिया है। इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में भी पिछले कई वर्षो से इसी सिद्धांत पर कार्य हो रहा है जिसमें सामुदायिक जल संग्रहण डिग्गीयां बनाकर केवल फव्वारा सिंचाई हेतु ही कनेक्शन दिये जा रहे हैं। इस योजना के क्रियान्वयन में भी तेजी आनी चाहिए ताकि हुमानगढ़, बीकानेर, चूरू और जैसलमेर के किसान जिनकी कृषि भूमि मुख्य नहर की लिफ्ट नहरों पर आती है, वे बारानी खेतों को सिंचित कर कृषि उत्पादन बढ़ाने में अपना योगदान दे सकें। इसी प्रकार पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) भी शीघ्रता से पूर्ण हो ताकि 13 जिलों की 2 लाख हैक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा मिल सके।
राजस्थान न केवल भौगोलिक दृष्टि से भारत का सबसे बडा राज्य है बल्कि यहां जनसंख्या घनत्व भी छत्तीसगढ व उत्तर-पूर्वी पहाड़ी प्रदेशों के अलावा सबसे कम है। इसलिए यहां भू- संसाधन भी अधिक उपलब्ध है। यहां आवश्यकता है सरकार, किसान और निजी क्षेत्र के सामुहिक एवं समेकित रूप से कार्य करने की, फिर न कृषि योग्य भूमि खाली रहेगी और न ही फसल विविधता में कमी रहेगी।