-वक्ताओं ने अलग-अलग भाषाओं में लोकतंत्र की मजबूती पर डाला प्रकाश…
कोलकाताNidarindia.com
भारतीय भाषा परिषद और सदीनामा प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय भाषा परिषद के सभागार में ‘भारतीय साहित्य में लोकतंत्र ‘एक संवाद’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इसमें वक्ताओं ने लोकतंत्र की मजबूती में लोकतंत्र की परम्परा पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में ‘परिषद’ की अध्यक्षा डॉ. कुसुम खेमानी के वक्तव्य से हुई। मौके पर उन्होंने कहा कि आज के समय में लोकतंत्र को बचाने के लिए ऐसे लोकतांत्रिक कार्यक्रमों की जरूरत है। आयोजन में शहर के बहुभाषी बुद्धिजीवियों ने शिरकत की। इसमें हिंदी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, राजस्थानी, मैथिली, उडिय़ा, नेपाली और मगही सहित दस भाषाओं के वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इसके बाद श्रोताओं के प्रश्नों के जबाव भी दिए।
पंजाबी साहित्य पर बोलते हुए महेंद्र सिंह पुनिया ने कहा कि गुरुनानक और बुल्लेशाह से लेकर पाश तक, ‘पंजाबी भाषा’ में लोकतंत्र की लंबी परम्परा रही है। इस परंपरा को उन्होंने कवियों की कुछ कविताओं से उदाहरण देकर प्रमाणित भी किया। गुरदीप सिंह संघा ने पंजाबी में एक लोकतांत्रिक कविता सुनाई। ‘हिंदी’ पर अल्पना सिंह एवं जीतेंद्र जितांशु ने अपनी बात रखी।
अजय तिरहुतिया ने ‘मैथिली भाषा’ पर बोलते हुए ज्योतिश्वर ठाकुर और विद्यापति के साहित्य से लोकतंत्र के कई उदाहरण दिए। मैथिली के एक और विद्वान अशोक झा ने कहा कि मैथिल प्रदेश में मनाया जाने वाला छठ पर्व लोकतंत्र का एक अद्भुत उदाहरण है, खासकर बांस काटने और उससे डोरी बनाने वाले लोग भले ही किसी जाति विशेष के होते हैं, पर उनके हाथ का बना समान छठ करने वाले सभी जाति के लोग उपयोग में लेते है। उन्होंने विद्यापति और नागार्जुन की कविताओं के जिक्र के माध्यम से भी दिखलाया कि किस तरह आज भी मिथिलांचल में लोकतंत्र मौजूद है।
‘राजस्थानी’ पर राजस्थानी जुबान में ही अपनी बात रखते हुए हिंगलाज दान रतनू ने कहा कि राजस्थानी भाषा के कई रूप हैं, लेकिन उनके बीच अद्भुत लोकतंत्र आज भी स्थापित है।
सौरभ गुप्ता ने ‘ओडिय़ा भाषा’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यहां तो लोकतंत्र की इतनी सुंदर व्यवस्था है कि भगवान को भी बुखार लगता है और उनका इलाज भी कई दिनों तक चलता है।
कुमार सुशांत ने ‘मगही भाषा’ पर बोलते हुए कहा कि मगही में लोकतंत्र सदैव विद्यमान रहा है। उन्होंने मगही भाषा के कबीर मथुरा प्रसाद नवीन की कविताओं को सुनाते हुए कहा कि कवि को सूखा चना खाना पसंद है, लेकिन संघर्ष छोडऩा नहीं। यानी कवि क्रांति के लिए संघर्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए ही करता है।
‘गुजराती भाषा’ पर बोलते हुए केयूर मजमुदार ने इसके कई आयाम खोले। ‘उर्दू’ पर अपनी बात रखते हुए डॉ. शाहिद फिरोगी ने कहा कि उर्दू भाषा तो हमेशा से ही लोकतांत्रिक भाषा रही है। उन्होंने कुछ शेरों-शायरी का उदाहरण देकर अपनी बात को और पुष्ट किया।
‘नेपाली भाषा’ में नीमा निकष ने नेपाली लेखन पर लोकतांत्रिक चर्चा की । अंत में भारतीय भाषा परिषद की तरफ से अमृता चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सदीनामा के मुख्य सम्पादक जीतेंद्र जितांशु ने गणमान्य लोगों का कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आभार जताया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष शिवकुमार लोहिया, प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन से जुड़े व्यक्तित्व प्रकाश किल्ला, एजाज हसन, हलीम साबिर, शीन एजाज, परवेज, राजस्थान पत्रिका के संपादक विनीत शर्मा, विमला पोद्दार, जगमोहन सिंह खोखर, विनोद यादव, रंजीत भारती, सीताराम अग्रवाल, अजेंद्रनाथ त्रिवेदी, शकुन त्रिवेदी, सेराज खान बातिश, सुरेश शॉ, संजीव गुरुंग, गोपाल भीत्रकोटि, रामायण धमला, देवेंदर कौर, दिव्या प्रसाद, अहमद रशीद, शंकर जालान, प्रदीप कुमार धानुक, सीमा भावसिहंका, उषा जैन, सरोज झुनझुनवाला, डॉ.विभा द्विवेदी, राम नारायण झा, परमजीत पंडित, राज जायसवाल, मीनाक्षी सांगानेरिया, सुशील कांति, मीनाक्षी दत्तगुप्त प्रभृति सहित गणमान्य लोग शामिल हुए।