पंजाब, हरियाणा तक है मांग, पढ़े ‘खजूर’ की कवर स्टोरी…
रमेश बिस्सा

बीकानेरNidarindia.com बीकानेरी का नाम आते ही इस शहर की पहचान भुजिया, पापड़, रसगुल्ला सरीखे खाद्य पदार्थों के जायके से कराई जाती है। फलों की बात करें तो काकडिय़ा, मतीरा, बैर जैसे फलों के नाम जुबां पर आता है, जो यहां पैदा होते है, लेकिन इनमें अब ‘खजूर’ भी शामिल हो गया है। जिसके स्वाद का लुत्फ पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सरीखे महानगर भी उठा रहे हैं।
बीकानेर में इसकी शानदार फसल होने लगी है वरन यहां के स्वामी केशवानंद कृषि विश्वविद्यालय में 54 किस्मों पर काम हो रहा है। कई किस्में बाजार में आ चुकी है। इनमें से बरही, हलावी, खूनिजी, मेडजूल आदि किस्में इतनी लोकप्रिय हो रही है कि इनकी डिमांड दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में खूब हो रही है।
अब एक बार फिर फल पकने का मौसम आ गया है। यूनिवर्सिटी कैंपस में प्राथमिक तौर पर लगभग 350 पेड़ों से फल तोडऩे का ठेका भी दे दिया गया है। एक पेड़ पर लगभग 100 किलो खजूर होते हैं। ऐसे में अकेले बीकानेर यूनवर्सिटी कैम्पस में ही लगभग साढ़े तीन टन खजूर की फसल तैयार है। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि राजस्थान के बाजारों मे इस सीजन में लगभग 28 हजार किलो खजूर आने वाला है। मीठा-रसीला होने के साथ ही इतना पौष्टिक है कि फूड एक्सपर्ट्स इसे संपूर्ण आहार तक बता रहे हैं।
बीकानेर में इतनी पैदावार…
राजस्थान में पैदा होने वाली खजूर का 25 प्रतिशत उत्पादन बीकानेर में ही हो रहा है। शेष 75 प्रतिशत में पश्चिमी राजस्थान के 11 जिले है। इसमें श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, चूरू, झुंझुनू, जालौर, सिरोही और पाली जिले शामिल है।
इतनी किस्मों पर चल रहा अनुसंधान…
बीकानेर के स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के खजूर अनुसंधान केंद्र में वर्तमान में खजूर की 54 किस्मों पर अनुसंधान का कार्य चल रहा है। इनमें बरही, हलावी, खूनिजी, मेडजूल आदि किस्में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। बीते कुछ समय से आमजन में खजूर की मांग बढ़ी है। जुलाई-अगस्त में यह मांग परवान पर रहेगी। खजूर अनुसंधान केंद्र की ओर से इसके उत्पादन की तकनीक, कीड़ों और बीमारियों से खजूर को बचाने की तकनीक, कम पानी में पैदावार और पौधे लगाने की तकनीक से किसानों को रूबरू कराया जाता है।
एक पेड़ देता है इतने किलो फल…
खजूर अनुसंधान केन्द्र के प्रभारी डॉ.राजेन्द्र राठौड़ के अनुसार दस साल की उम्र का खजूर का एक पेड़ एक सीजन में 80 से 100 किलो तक फल देता है। बीकानेर में 336 हैक्टेयर क्षेत्र में खजूर के पेड़ हैं। इस बार बीकानेर केन्द्र ने खजूर के 350 पेड़ों की नीलामी की है। इनसे अब ठेकेदार अपनी बिक्री करेगा। इसका मुख्य सीजन जुलाई और अगस्त है।
336 हैक्टेयर में खेती…
बीकानेर के खजूर अनुसंधान केन्द्र में 336 हैक्टेयर क्षेत्र में इस बार खजूर की पैदावार हुई है। राजस्थान में 1200 हैक्टेयर क्षेत्र में खजूर की पैदावार होती है। खजूर के फलों में परिपक्वता की चार अवस्थाएं होती हैं। इन्हें गंडोरा, डोका, डेंग और पिंड अवस्थाएं कहते हैं। बीकानेर में सामान्यतया डोका अवस्था में ही खजूर के फल तोड़ लिए जाते हैं।
विटामिन-प्रोटीन है भरपूर…
कृषि अनुसंधान क्षेत्रीय निदेशक डॉ. आर एस यादव के अनुसार खजूर गुणों से भरपूर है। यह मीठा, स्वादिष्ट, पौष्टिक, बलवर्धक, पित्तनाशक होता है। इसमें विटामिन, प्रोटीन, रेशे, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा होने के कारण यह पूर्ण आहार भी कहलाता है। खजूर की चटनी बनती है। मेडजूल किस्म का खजूर छुहारे बनाने के काम आता है। केक और पुडिंग में भी खजूर का उपयोग किया जाता है।
होती है आयरन की मात्रा…
खजूर में आयरन भरपूर मात्रा में होता है। यह शरीर में खून की कमी को दूर करने में सहायक है। खजूर में मौजूद विटामिन के कारण बाल मजबूत होते हैं। नियमित सेवन से बालों के झडऩे की समस्या दूर होती है। खजूर में पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज, फ्रक्टोज और सुक्रोज पाया जाता है। तुरंत ताकत के लिए इसका सेवन बहुत फायदेमंद होता है। खजूर में कैल्शयिम, मैग्नीज और कॉपर की मात्रा होती है। इसके सेवन से हड्डियों को मजबूती मिलती है।
चार साल में तैयार होता पेड़…
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में लगातार अनुसंधान चल रहा है। खजूर का एक पेड़ चार साल में पूरा तैयार होता है। इसके बाद ही उसमें फल मिलते हैं। बीकानेर में डोका अवस्था में ही फल तोड़े लेते हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय परिसर में ही इनका बिक्री केन्द भी है। बीकानेर में ही इसकी सर्वाधिक खपत है।
डॉ.पी.एस.शेखावत, निदेशक, कृषि विश्वविद्यालय अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर
