कोलकाता : भारी मन से किया देवी माता को विदा, अगले वर्ष फिर से आने का किया आग्रह, देर रात तक चला प्रतिमाओं का विजर्सन, पूजा महोत्सव की पूर्णाहुति.... - Nidar India

कोलकाता : भारी मन से किया देवी माता को विदा, अगले वर्ष फिर से आने का किया आग्रह, देर रात तक चला प्रतिमाओं का विजर्सन, पूजा महोत्सव की पूर्णाहुति….

कोलकाताNidarIndia.com शारदीय नवरात्रा में महानगर में चल रहे दुर्गा पूजा महोत्सव के अंतिम दिन बुधवार को दुर्गा माता की विदाई हुई। श्रद्धालुओं ने माता रानी को भारी मन के साथ विदा किया और अगले वर्ष फिर से आने का आग्रह किया। इससे पूर्व मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की गई। परम्परा के अनुसार महिलाओं ने सिन्दुर खेला की रस्म निभाई। दोपहर बाद में प्रतिमा विसर्जन शुरू हो गया, जो देर रात तक जारी था।

पांच पीढिय़ों से मल्लिक परिवार मना रहे महोत्सव…

मल्लिक परिवार में दुर्गा पूजा!

कोलकाता में दुर्गा पूजा सिर्फ सार्वजनिक पंडाल में ही नही होती है बल्कि कुछ पुराने पारम्परिक परिवार के घरों में पूजा महोत्सव का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। दिवंगत भोलानाथ मल्लिक परिवार में 169 वर्ष पुरानी दुर्गा पूजा महोत्सव की परम्परा चली आ रही है। हलांकि कोलकाता में दुर्गा पूजा यानी मस्ती, भृमण, पंडाल थीम आधारित, आधुनिक कलाकृति से बनी विभिन्न तरह की मूर्ति, विद्युत सज्जा का एक विशिष्ट आकर्षण रहता है लेकिन पुराने बंगाली जमींदार परिवार में आज भी पूजा का एक अलग ही आकर्षण है। इन पूजा में परम्परा, श्रद्धा, निष्ठां, विश्वास, समर्पण और आध्यात्मिक मस्ती का एक विशिष्ट अंदाज रहता है।

प्रार्थना मल्लिक परिवार की पूजा में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता स्वपन बर्मन, मदन मिश्रा और गणमान्य लोग।

वरुण मल्लिक बताते है कि उनके परिवार में 169 वर्ष की से चल रही परम्परा का आज भी निर्वाह किया जा रहा है। मल्लिक परिवार के सदस्य देश या विश्व के किसी भी कोने में रहते है सभी पूजा के समय कोलकाता आते हैं, और पारम्परिक तरीके से पूजा अनुष्ठान करते है। वरुण मल्लिक ने बताया कि महालया के अगले दिन मां का आगमन हो जाता है, उसके आगमन के बाद देवीपाक्षा शुरू होता है ।मल्लिक परिवार में विराजित सूंदर मूर्ति का निर्माण और उसको सुसज्जित करने का कार्य आज भी 169 वर्ष पूर्व जिस परिवार ने किया, आज भी उसी परिवार के सदस्य से ही कर रहे हैं।

पूजा के पंडित भी उसी परिवार से है जिस परिवार के पूर्वपुरुष ने पूजा सम्पन्न कराई थी। आरती के समय परिवार के सदस्य पारम्परिक भक्ति की धुनों और ढाक के स्वर पर जो नृत्य किया जाता है, वह अद्वितीय है ।मल्लिक बाड़ी में अभी भी नीलकंठ अनुष्ठान की परंपरा है । नीलकंठ दुर्गा के आगमन की सूचना भगवान शिव तक सन्देश पहुचाने का कार्य करता है। इसके अलावा अष्टमी में कुमारी पूजन के स्थान पर मल्लिक बाड़ी में सुहागन स्त्री को मां का जीवंत स्वरूप मान कर पूजा की जाती है ।विजया दशमी के दिन सिंदूर खेला के बाद पारम्परिक तरीके से मां को पालकी में बैठा कर विदाई की गई। इसमें मल्लिक परिवार के सभी सदस्य शामिल हुए।

रिपोर्ट : एनडी व्यास, कोलकाता

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