अमिताभ के बाद मेरा भरोसा खत्म हो गया: अमर सिंह - Nidar India

अमिताभ के बाद मेरा भरोसा खत्म हो गया: अमर सिंह

एसपी से मैंने खुद सारे पदों से त्यागपत्र दिया था। मैं गया अपनी मर्जी से और लौटा मुलायम सिंह जी की मर्जी से। मेरे एसपी नेताओं, खासकर मुलायम सिंह जी, अखिलेश, शिवपाल जी और रामगोपाल जी से संबंध राजनीतिक कम, भावनात्मक और पारिवारिक ज्यादा रहे हैं। आज तक अखिलेश ने मेरा नाम लेकर सार्वजनिक मंच से मुझे नहीं बुलाया। हमेशा अंकल ही कहा। उन्हें कन्नौज से पहला टिकट देने में मेरी भूमिका रही। मुझे एसपी में टिकटार्थी बनना मंजूर नहीं है, चाहे मेरी राजनीति की अर्थी निकल जाए। इसके बावजूद बिना औपचारिक रूप से एसपी में आए, मुलायम सिंह जी ने मुझे राज्यसभा के लिए एसपी प्रत्याशी बनाया।

अभी यूपी में अखिलेश को किस तरह देखते हैं?
पुरानी पीढ़ी जिसने अखिलेश को शैशवावस्था में देखा है, उसे अब मानना पड़ेगा कि अखिलेश अब परिपक्व युवा है, जिसमें नेतृत्व देने की भरपूर क्षमता है। मुलायम सिंह जी और अखिलेश के बीच जो कभी-कभार आप देखते हैं, वह कोई दुराव नहीं है, बल्कि मुलायम सिंह जी अब भी अखिलेश के प्रति चिंतित रहते हैं। दुख तब होता है जब कुछ छुटभैये नेता इसका लाभ दिखाकर अपनी रोटियां सेंकने लगते हैं।

छोटे से लेकर बड़े विवाद में आपका नाम, हिलेरी क्लिटंन से लेकर स्थानीय मुद्दों तक?
हमारे चरित्र की विविधता यही तो है। जीवन के 9 रस हैं। हमने सभी 9 रसों का रसास्वादन किया है। मुझे यह कहने में कोई लज्जा नहीं है। जब आप नौ रसों को रसास्वादन करेंगे, गीत, नृत्य, संगीत, राजनीति यत्र-तत्र-सर्वत्र आप दिखाई देंगे तो यह विविधता आपको आकर्षक भी बनाएगी, चर्चित भी बनाएगी और विवादित भी बनाएगी। संभवत हमारे चरित्र का जो समन्वय रहा… ये हमें बीमार बना गया। मेरे दोनों गुर्दे गए, किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा। मेरी आंतें नहीं हैं। आप जिससे बातें कर रहे हैं, उस व्यक्ति के पास 70 प्रतिशत आंत नहीं है, उसके दोनों गुर्दे खत्म हो चुके हैं, वह प्रत्यारोपित गुर्दे और दवाओं पर जिंदा है, लेकिन इतने पर भी मैं बहुत विनम्रता से कहूंगा कि कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। राजनीति और स्टॉक मार्केट एक सा मामला है।

क्या अमिताभ ने आपको स्वार्थी बना दिया?
स्वार्थी बनाया, ऐसा नहीं कह सकते है। हां, ऐसी भावना आ गई। स्वार्थी बहुत कटु शब्द है, लेकिन निपट निस्वार्थ भावना को खत्म कर दिया। मैंने अमिताभ की कोई मदद नहीं की है। मैं उन्हें इतना प्यार करता था कि उनकी हर समस्या मेरी अपनी होती थी, लेकिन उस स्तर के अटूट, निस्वार्थ, निश्चल समर्पण पर मात्र राज्यसभा के एक नामांकन के लिए जया बच्चन जी ने कुठाराघात किया और उसका प्रबल समर्थन अमिताभ जी ने किया। ये चीज मुझे खराब लगी। आपको ताज्जुब होगा कि जब हमारे-उनके संबंध थे तो मैंने होली-दिवाली अपने बच्चों के साथ नहीं मनाई। अपनी होली-दिवाली तक उनके नाम कर दी। हमारी होली-दिवाली तक बच्चन परिवार के साथ बीती है। मुझे कष्ट है उन बीते हुए लम्हों का, जो हमने अपने परिवार को नहीं दिया।

क्या अब कभी किसी पर इतना भरोसा कर पाएंगे? किसी को इतना प्यार कर पाएंगे?
मुझे नहीं लगता कि बच्चन परिवार से संबंध टूटने के बाद मैं किसी पर इतना विश्वास कर पाऊंगा या किसी को इतना प्यार कर पाऊंगा। इस चीज ने मेरे व्यक्तित्व को, मेरे सोचने के तरीके को, लोगों की तरफ देखने के मेरे अंदाज को काफी बदला है। पिछले 6-7 सालों में मैं अपने परिवार के ज्यादा निकट आया हूं। जो समय और लोगों को देता था, अब अपने बच्चों और परिवार को देता हूं। मैंने अभिषेक और श्वेता को अपनी बेटियों से ज्यादा प्रेम और समय दिया है। बच्चन परिवार से रिश्ता टूटने के बाद मुझमें बेजारी आ गई। वो कहते हैं ना कि बर्बादियों का शोक मनाना फिजूल था, बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया।

अमिताभ जी से एसएमएस के जरिए बात होती है। वह एसएमएस करते हैं, हर मौके पर। पिछले दिनों मैंने उन्हें संदेश भी भेजा कि गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा, हाफिज खुदा तुम्हारा। अब ये सब करने का क्या मतलब है। ये औपचारिकताएं बनावटी लगती हैं।

कई दोस्त बनाए लेकिन मुसीबत में साथ छोड़ दिया?
बहुत ज्यादा हर्ट हुआ। अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी से मैं नाराज नहीं हूं। अमिताभ जी से तो बिल्कुल नाराज नहीं हूं। हां, उन्होंने मेरे अंदर के व्यक्तित्व को मार दिया। मुझ में जो व्यक्ति सहज-सुलभ था, जो बढ़-चढ़कर लोगों की मदद के लिए तत्पर रहता था, उस व्यक्ति की मौत अमिताभ जी के आचरण के कारण हुई।

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